भारत में जल संसाधन तंत्र के क्षेत्र में अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें: क) जल की उपलब्धता में स्थानिक एवं और सामयिक परिवर्तनशीलता, एवं जल की बढ़ती मांग तथा जल की उपलब्धता में असंतुलन के परिणामस्वरूप बाढ़, सूखा, मृदा अपरदन और जलाशय अवसादन संबंधी आपदाएँ (ख) देश के वृहत्त भाग में जनसंख्या, सिंचाई, औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण के क्षेत्र में तीव्र वृद्धि के साथ- 2 जलवायु परिवर्तन के कारण जल संकट में वृद्धि, और ग) जलविज्ञान, जल संसाधनों तथा संबंधित क्षेत्रों के लिए पर्याप्त आंकड़ों की अनुपलब्धता प्रमुख हैं। उपलब्ध जल संसाधनों के इष्टतम उपयोग एवं पर्यावरणीय स्थिरता पर ध्यान दिए बिना जल संसाधन परियोजनाओं को अक्सर योजनाबद्ध किया जाता है। जल संसाधन तंत्र प्रभाग इन समस्याओं के समाधान के क्षेत्र में निरंतर कार्यरत है। प्रभाग ने मध्य हिमालय के अंतर्गत हिन्वल, उत्तराखंड में तथा पश्चिमी हिमालय के अंतर्गत लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर में प्रायोगिक जल विज्ञान अनुसन्धान कार्यों का प्रारम्भ किया है, जिसके अंतर्गत स्वचालित मौसम केंद्र एवं स्वचालित जल स्तर मापक केंद्र जैसे अत्याधुनिक जल विज्ञान संबंधी उपकरण-समूहों से सुसज्जित वेधशालाओं की स्थापना की गयी है। जल संसाधन तंत्र प्रभाग राष्ट्रीय जलविज्ञानीय परियोजना (एन.एच.पी), नेशनल मिशन फॉर सस्टेनेबल हिमालयन इको-सिस्टम (एन.एम.एस.एच.ई), नेशनल मिशन ऑन हिमालयन स्टडीज (एन.एम.एच.एस) परियोजना, नीरांचल राष्ट्रीय जलविभाजक परियोजना में सक्रिय रूप से भाग ले रहा है।
![]() | डा. संजय कुमार जैन, वैज्ञानिक ‘जी’ और प्रमुख, जल संसाधन तंत्र प्रभाग, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की– 247667 दूरभाष : 01332-249209, ईमेल : sjain[dot]nihr[at]gov[dot]in |
प्रभाग के विजन
जल संसाधन तंत्र प्रभाग, बेसिन पैमाने पर जल संसाधनों के एकीकृत और इष्टतम प्रबंधन के लिए कार्यप्रणाली को विकसित करने और उसे प्रचालित कर जल की समस्याओं के लिए सम्भाव्य समाधान प्रदान करने के लिए दृढ़ संकल्प है। प्रभाग के प्रमुख कार्य क्षेत्र के उद्देश्य निम्न हैं:
- नदी बेसिन में जल संसाधनों के एकीकृत मूल्यांकन और इष्टतम प्रबंधन के लिए कार्यप्रणाली को विकसित करना और प्रचालित करना।
- वाष्पोत्सर्जन, मृदा नमी, पुनर्भरण, अपवाह आदि जलविज्ञानीय प्रक्रियाओं को समझने के लिए एक प्रयोगात्मक जलग्रहण की स्थापना और संचालन ।
- हिम/हिमनद तथा पर्माफ्रॉस्ट (permafrost) प्रक्रियाओं को समझने और प्रतिरूपण करने के लिए क्रायोस्फेरिक (Cryospheric) अध्ययन।
- जल संसाधन नियोजन और प्रबंधन के लिए सूदूर संवेदन और जी.आई.एस जैसे उन्नत उपकरण विकसित करना और प्रयोग में लाना।
- जल प्रणालियों के विश्लेषण के लिए उपयोगकर्ता के अनुकूल सॉफ्टवेयर विकसित करना।
- जल संचालन के लिए वैज्ञानिक सहयोग प्रदान करना।
- वेब आधारित जल संसाधन सूचना प्रणाली विकसित करना
